बुधवार, 8 मई 2019

एक ईंट का मकान ( नवभारत टाइम्स में प्रकाशित )

किताब : एक ईंट का मकान
लेखक : अक्षय जैन
प्रकाशक : इलोक्वेंट दाराइटर पब्लिशर्स प्रा. लि., 5/704, तुलसीधाम, घोड़बन्दर रोड, ठाणे (प) 400610
मूल्य : ₹ 125

अक्षय जैन की पहचान मूलतः राजनैतिक चेतना से सम्पन्न लेखक के रूप में है किन्तु उनके लेखन की परिधि महज़ राजनीतिक विषयों तक सीमित नहीं है। 'एक ईंट का मकान' भारतीय राजनीति, समाज, पर्यावरण और संस्कृति से जुड़े विभिन्न विषयों पर आधारित आलेखों का अद्भुत संग्रह है।

किताब का आगाज़ होता है प्रसिद्ध कथाकार जगदम्बाप्रसाद दीक्षित की भूमिका से। अक्षय जैन के लेखन की सटीकता, चुटीलेपन और विषयों के वैविध्य पर टिप्पणी करते हुए दीक्षित जी उनके लेखन की मार को सटीक और अद्भुत बताते हैं।

किताब के आलेखों से गुजरते हुए अक्षय जैन की परिपक्व वैचारिकता और चिंतन के दर्शन होते हैं। उनके लेखन में उपस्थित व्यंग्य की महीन धारा और तेवर सीधे पाठक के मर्म पर प्रहार करते हैं। संग्रह के पहले आलेख में वे स्वयं पर भी तंज कसते हुए लिखते हैं "जब से मैं अमर होने के मोह-माया से मुक्त हुआ हूँ, दूसरों के विचारों को उन्हीं की जुबानी लोगों तक पहुँचाने का लुत्फ़ उठा रहा हूँ।"

अक्षय जैन की चिंता के दायरे में देश और समाज के हर कोने से जुड़ी अनेकों समस्याएँ और वो मुद्दे हैं जो निरन्तर एक अपसंस्कृति के निर्माण में परोक्ष भूमिका अदा कर रहे हैं। बाजार, देशभक्ति, भूख, साम्प्रदायिकता, विदेशी पूँजी, हिन्दू मुस्लिम एकता,जंक फूड, गायब होते बचपन, पुरस्कार लौटाने वालों के पाखंड, दंगों के पीछे का सत्य, स्वदेशी अर्थव्यवस्था के फ़ायदे और जहरीले विदेश खाद्य एवं पेय पदार्थों जैसे समकालीन विषयों पर गहरी पड़ताल करते हुए वे अपनी निडर प्रतिक्रिया प्रस्तुत करते हैं।
'दलाली का चौथा खंबा' शीर्षक आलेख में वे मीडिया के बिकाऊ वर्तमान परिदृश्य को रेखांकित करते हैं। 'यह आजादी झूठी है' में वे लिखते हैं कि अब समय आ गया है जब हम सब मिलकर अपने राष्ट्र को विदेशी पूंजी, विदेशी शिक्षा और विदेशी संस्कृति से मुक्त करने का अभियान शुरू करें। 'वेंटिलेटर पर हिन्दी' में राष्ट्र-भाषा के महत्व और इस संग्रह के अन्तिम आलेख में देश की उन नदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर जमकर प्रहार करते हुए लिखते हैं कि हमसे बड़ी आत्महंता कौम शायद ही कोई और हो जो अपने ही हाथों अपनी जीवनधारा का विनाश करने पर तुले हैं।
अक्षय जैन के इन आलेखों की  विषयवस्तु और उनके लेखकीय सरोकार इस किताब को विशिष्ट बनाते हैं।

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