मुम्बई के साहित्यिक परिदृश्य पर कवि, आलोचक, कथाकार आलोक भट्टाचार्य की लम्बी और सक्रिय उपस्थिति रही है। कुशल मंच संचालन के लिए भी उनका बड़ा नाम था।
आलोक से मुलाक़ात का संयोग तो कभी नहीं बना था किन्तु उनके देहावसान के बाद उन्हीं की लिखी संस्मरणों की एक किताब हाथ लगी-'पथ के दीप' जिसे पढ़कर आलोक के खुरदरे व्यक्तित्व को समझना आसान हुआ। उस किताब में शामिल ज़्यादातर संस्मरण अत्यंत आत्मीय और यादगार बन पड़े हैं।
★'कवि की यात्रा' आलोक भट्टाचार्य की आत्मकथात्मक कृति है। इस किताब की शुरुआत में वे लिखते हैं - "यह पुस्तक खुद एक भूमिका है। मेरे जीवनांश और मेरी कविता की संक्षिप्त भूमिका! चूँकि मेरे कवि-व्यक्तित्व के सीमित दायरे में यह मेरा आत्मकथ्यान्श भी है और आत्मकथा की मर्यादा ही इस बात में है कि लिखो तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सच ही लिखो, वरना मत लिखो। सो न चाहकर भी यहाँ मुझे कहीं कहीं कुछ कड़वा कहना ही पड़ा है। किसी को ठेस पहुँचाना मेरा उद्देश्य हो ही नहीं सकता। सिर्फ़ सच ही कहा है- वह भी मेरे ही हिस्से का सच।"
आलोक भट्टाचार्य मूलतः कवि थे और कविता के प्रति उनमें सकारात्मक आस्था थी। पुस्तक के आरम्भ में ही अपने एक दूसरे कथ्यांश में वे लिखते हैं- "कविता दरअसल हाथ पकड़कर आपको ज़िन्दगी का रास्ता बतलाती है। आपको भटकने बहकने नहीं देती। हर तरह के असमंजस और दुविधा से आपको मुक्त रखती है। न सिर्फ़ आपको ज़िन्दगी की समझ देती है, उचित अनुचित का विवेक देती है बल्कि खुद आपको इस लायक बना देती है कि आप दूसरों को यह समझ यह विवेक दे सकें, ज़िन्दगी क्या है, समझा सकें। तभी आपकी कविता मनुष्य के लिए उपयोगी साबित होती है।"
आलोक भट्टाचार्य की इस किताब में जहाँ उनके व्यक्तिगत जीवन के संघर्षों, प्रेम प्रसंगों और व्यक्तिगत आत्मीय सम्बन्धों के तमाम किस्से दर्ज हैं, वहीं उनके समय के तमाम तथाकथित और फर्जी लेखकों, कवियित्रियों की हास्यास्पद सच्ची कहानियाँ भी। आलोक भट्टाचार्य अपनी प्रशंसा में भी कोई कंजूसी नहीं बरतते बल्कि उनके संस्मरणों में अनेक बार उनकी आत्ममुग्धता मुखर हो उठती है। कभी अपनी कविता के लिए प्राप्त प्रशंसा के विवरण तो कभी मंच संचालन हेतु गायकों, संगीतकारों, अभिनेताओं और लेखकों की तारीफ़ के किस्से दर किस्से....
आलोक भट्टाचार्य के गद्य की यह एक बड़ी ताकत है कि उनके आत्मकथ्यों में भी किसी उपन्यास सी रोचकता मौजूद है। 'कवि की यात्रा' के आवरण पर जिन सज्जन की कलाकृति है उन्हें किसी परिचय की ज़रूरत नहीं! पाठक उनकी कलाकृति देखकर स्वयं उनके नाम तक पहुँच जायेंगे। बेहतरीन आवरण के साथ ही किताब के प्रकाशन में प्रयुक्त कागज़ और फॉन्ट आदि भी शानदार हैं।
आलोक भट्टाचार्य की यह किताब परिदृश्य प्रकाशन, मुंबई से छपी है।
◆ कवि की यात्रा
◆ आलोक भट्टाचार्य
◆ परिदृश्य प्रकाशन मुम्बई
◆ मूल्य- ₹ 225
© गंगा शरण सिंह