किताब : कॉर्पोरेट चाणक्य
लेखक : राधाकृष्णन पिल्लई
प्रकाशक : जयको पब्लिशिंग हाउस, ए-2, जश चैम्बर्स, 7-A, सर फिरोजशहा महेता रोड
फोर्ट, मुम्बई-400001
मूल्य : ₹ 275
'कॉर्पोरेट चाणक्य' अंग्रेजी के जानेमाने लेखक राधाकृष्णन पिल्लई की चाणक्य श्रृंखला की पहली बेस्टसेलर किताब है।
प्रेरणादायक विषयों पर यह एक महत्वपूर्ण रचना है और चाणक्य के राजनीतिक और प्रशासनिक विचारों से इसकी प्रेरणा ली गई है।
पुस्तक के आरम्भ में चाणक्य के संक्षिप्त परिचय में 'विष्णुगुप्त' और 'कौटिल्य' जैसे उनके प्रचलित नामों का ज़िक़्र करते हुए लेखक यह तथ्य सामने रखते हैं कि चाणक्य ऐसे पहले राजनैतिक विचारक थे जिन्होंने 'राष्ट्र' की अवधारणा की कल्पना की और भ्रष्ट नंद वंश का पतन कर अपने सुयोग्य शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को सिंहासन पर बैठाया। कूटनीतिक विद्वता के साथ ही चाणक्य प्रबंधन, अर्थशास्त्र, प्रशासन, राजनीति और सैन्य व्यवस्था जैसे विभिन्न विभागों में भी निपुण थे। यही कारण है कि इन विषयों पर उनका मत हर कालखण्ड में प्रासंगिक रहता है।
यह पुस्तक नेतृत्व, प्रबन्धन और प्रशिक्षण नामक तीन खंडों में विभाजित है। पहले खंड 'नेतृत्व' के अंतर्गत कॉर्पोरेट जगत की शक्ति, उसके कानून, गोपनीयता, व्यवसाय और सफलता के विविध आयाम, नेता के गुण, ज्ञान, व्यापार नीति, विरासत और आकस्मिक समस्यायों के निराकरण, सेना और राज कोष, सफलता के मूलमंत्र, खेल के सिद्धांत, रणनीति बनाम दाँव पेंच, युद्धक्षेत्र के पहलुओं, कंपनी अधिग्रहण, शांति और युद्ध तथा आतंकवाद का दमन जैसी सर्वकालिक समस्याओं के समाधान का प्रयास चाणक्य नीति के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। किसी संस्थान की सफलता उसके कर्मचारियों के श्रम और समर्पित कर्तृत्व पर निर्भर होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों को प्रेरित करने, उन्हें अन्तिम विदाई देने और पुराने कर्मचारियों के संरक्षण जैसे आवश्यक मुद्दों पर चाणक्य नीति का हवाला देते हुए वे लिखते हैं कि अनुभवी लोग किसी संगठन की बहुमूल्य संपत्ति के समान होते हैं और इनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
दूसरे खण्ड 'प्रबंधन' में कर्मचारियों के बचाव, सुरक्षा, पदोन्नति, गुणवत्ता नियंत्रण, राजकोष की देखरेख, कर भुगतान की व्यवस्थित पद्धति, निगरानी प्रणाली, छोटी लड़ाइयों को रोकने, सफलता के लिए एकजुट होने, सामूहिक प्रयासों, सूचना, समय और आपदा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चाणक्य नीति के अनुसार प्रकाश डाला गया है।
अन्तिम खण्ड 'प्रशिक्षण' प्रक्रिया पर आधारित है। बच्चों के उचित प्रशिक्षण, पुराने और नए लोगों के बीच उचित सामंजस्य, आत्म अनुशासन, कार्यस्थलों की स्वच्छता और परामर्शदाताओं की सलाह आदि बिंदुओं पर सरल और सर्वग्राह्य परिचर्चा पाठकों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है।
सफलता के चाणक्य युगीन पुरातन सूत्रों को समसामयिक सन्दर्भों से जोड़ने वाली और आध्यात्मिक प्रबंधन के अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल यह किताब सिद्ध करती है कि अर्थशास्त्र का ज्ञान आज के युग में भी उतना ही व्यावहारिक और प्रासंगिक है।
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