बुधवार, 8 मई 2019

बीर बहूटी ( नवभारतटाइम्स )

किताब : बीर बहूटी
लेखक : अशोक गुजराती
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006
मूल्य : ₹ 60

वरिष्ठ लेखक अशोक गुजराती का यह नाटक भारतीय समाज के बदलते परिदृश्य और परिवर्तनशील मानवीय प्राथमिकताओं का सशक्त चित्रण करता है। इस नाटक की कथावस्तु के केन्द्र में जो परिवार है, वहाँ मुख्य पुरुष पात्र चंदर ( चंद्रहास ), उसकी पत्नी अरु ( अरुंधति ), पुत्र रोचक, पुत्री रिदम एवं दो घरेलू नौकर किशन एवं रूपा हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत चंदर एक महत्वाकांक्षी मध्यवर्गीय पुरुष है जिसकी इच्छाओं के केन्द्र में आधुनिक जीवन की अनेकानेक सुख सुविधाएं हैं। जीवन व्यवस्थित और भौतिक समृद्धि से भरा पूरा रहे, इसके लिए चन्दर और अरु दोनों नौकरी करते हैं। मौजूदा व्यवस्थाएं चंदर को उधार अर्थात लोन द्वारा इन इच्छाओं को पूरा करने के तमाम अवसर उपलब्ध कराती हैं। बाजार वर्तमान सदी में इस कदर सक्रिय है कि वह जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं के साथ साथ उन वस्तुओं को भी धीरे धीरे हमारी ज़रूरत बना देता है जिनके बगैर आसानी से जीवन बिताया जा सकता है। चंदर लोन के सहारे निश्चिन्त उन सारी सुविधाओं को एक एक कर जुटाता जाता है।
अरुंधती के सहकर्मी अक्षत और उसकी पत्नी वसुन्धरा के बीच उत्पन्न पारिवारिक टकराव की समस्या जब चंदर और अरु के सामने आती है तो दोनों बड़ी समझदारी और संवेदना से न सिर्फ़ उन्हें समझाने में सफल होते हैं बल्कि टूटने की कगार पर खड़े एक वैवाहिक सम्बन्ध को पुनर्जीवित भी कर जाते हैं।
मूल कथा के समानांतर उनके नौकरों किशन और रूपा की प्रेम कथा भी मर्यादित ढंग से आगे बढ़ती रहती है जिसे उनका विवाह कराते हुए सुखद अंजाम तक पहुँचाते हैं चंदर और अरु।
चंदर वैश्विक स्तर पर आई मंदी के बाद शुरू हुई कर्मचारियों की छंटनी में  बेरोजगार हो जाता है। इस आकस्मिक विपत्ति के कारण चंदर अवसादग्रस्त होकर शराब में डूब जाता है। आर्थिक अव्यवस्था और परेशानी के इन दिनों में किशन और रूपा काम छोड़कर जाने की बजाय आधे वेतन पर नौकरी करते रहने का निश्चय करते हैं।
तीन अंक और 48 पृष्ठों में समाहित अशोक गुजराती के इस नाटक की सीमित कथावस्तु में मानवीय प्रतिबद्धताओं और मूल्यों का चित्रण अत्यंत सहजता और सरलता से हुआ है। मुख्य पात्र के सामयिक विचलन के बावजूद उनके अधिकांश पात्र अपने चरित्र की दृढ़ता और जिजीविषा के कारण स्मृतियों में कायम रह जाते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विरह विगलित कदंब: पुष्पा भारती

विरह विगलित कदंब पुष्पा भारती साहित्य सहवास में चारों ओऱ बड़े करीने से हरियाली उग आई थी। अपनी मेहनत की सफलता पर खुश भी थे भारती जी कि सहसा उ...