किताब : अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ
सम्पादक : बनारसीदास चतुर्वेदी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली - 110002
मूल्य : ₹ 150
बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित यह किताब अमर क्रान्तिकारी अशफाक उल्ला खाँ पर केन्द्रित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्य है। इस संग्रह में अशफाक उल्ला खाँ की आत्मकथा के कुछ उपलब्ध अंशों के अतिरिक्त जेल से लिखे गए उनके पत्र, उनकी कुछ रचनाएँ ( जिनमें ग़ज़लें भी शामिल हैं) और कृपाशंकर हजेला, सुशील कुमार, रामप्रसाद बिस्मिल, जोगेशचन्द्र चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त और रियासत उल्ला खाँ द्वारा लिखे गए कुछ संस्मरण संग्रहीत हैं।
अशफाक उल्ला खाँ क्रांतिकारियों के उस विशिष्ट दल में थे जिसने काकोरी कांड को अंजाम दिया था। इस अभियान के प्रमुख थे- रामप्रसाद बिस्मिल और सहयोगियों में थे- शचीन्द्रनाथ सान्याल, जोगेशचन्द्र चटर्जी, राजेन्द्र लाहिड़ी आदि। अशफाक हालाँकि इस डकैती के पक्ष में नहीं थे किन्तु यह एक सामूहिक निर्णय था और अंततः संगठन के अनुशासन के हिसाब से उन्होंने अपनी भूमिका निभाने में कोई कोताही नहीं बरती। काकोरी कांड के सारे नामित अभियुक्त धीरे धीरे पकड़े गए। अशफाक लम्बे समय तक वेशभूषा बदलकर छुपते रहे, किन्तु अपने एक सहपाठी मित्र के विश्वासघात के कारण पकड़े गए। चंद्रशेखर आजाद अंत तक नहीं पकड़े गए।
अशफाक के व्यक्तित्व का एक और पहलू उल्लेखनीय है। वे उर्दू के एक बहुत अच्छे कवि और ग़ज़लकार भी थे।
इस पुस्तक के सम्पादक बनारसीदास चतुर्वेदी का जीवन भी कम प्रेरक नहीं है। वे क्रान्तिकारी शहीदों के परिवारों को आर्थिक सुरक्षा दिलाने और दिवंगत साहित्यकारों की कीर्तिरक्षा हेतु आजीवन समर्पित रहे। श्रमजीवी पत्रकारों की आर्थिक बौद्धिक सुदशा व उन्नति के लिए भी उन्होंने भागीरथ प्रयत्न किए। उनके समर्पण और प्रतिबद्धता के कारण ही यह विशिष्ट पुस्तक आकार ले सकी जहाँ अशफाक उल्ला साहब का बचपन , बलिदान के लिए समर्पित युवावस्था, अंग्रेजी प्रशासन का मुखर विद्रोह और अंततः देश के लिए बड़े गर्व और स्वाभिमान से हँसते हुए फाँसी के तख्ते पर चढ़ जाने की अनेक बातें सिलसिलेवार दर्ज़ हैं। इस किताब के पिछले फ्लैप पर सत्य ही लिखा गया है कि रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ जैसे नायकों को जानना इस देश की गंगा जमुनी तहज़ीब और विरासत को देखना और समझना है।
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