जितनी क़समें खाई हमने रौशनी के सामने
उससे ज़्यादा तोड़ डालीं तीरगी के सामने
हस्तीमल हस्ती की ग़ज़लें पढ़ते समय कभी शब्दकोश उठाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। उनकी सरल ग्राह्य भाषा और कथ्य की धार पाठकों को हैरत में डाल जाती है।
जिस ग़ज़ल के आरम्भिक शेर से इस आलेख का आरम्भ हुआ है, उसके कुछ और शेर देखिए..
रख दिया करती है तोहफ़े यूँ भी ये क़िस्मत कभी,
घर किसी के सामने तो दर किसी के सामने
अपनी इस फ़ितरत को मैं ख़ुद भी समझ पाया नहीं,
जिससे हारा, जा रहा हूँ फिर उसी के सामने ।
एक शेर प्रारब्ध और दूसरा मानव स्वभाव की विषमता बयान करता है। इस वैषम्य के बाद उनका सुर किस तरह पलटता है और वो अपने स्वाभाविक तेवर में लौटते हैं ये देखना बेहद दिलचस्प है...
दिक़्क़तें तो ठहरीं अपनी मरज़ी की मालिक मियाँ,
आज घर के सामने हैं कल गली के सामने ।
हस्ती साहब अपने दौर की विद्रूपता और विडंबना पर भी सटीक प्रहार करते हैं। एक बेहद प्रिय ग़ज़ल जिसे किसी मंत्र की तरह याद रखा जा सकता है......
क्या ख़ास क्या है आम ये मालूम है मुझे
किसके हैं कितने दाम ये मालूम है मुझे..
ख़ैरात मैं जो बांट रहा हूँ उसी के कल
देने पड़ेंगे दाम ये मालूम है मुझे
हम लड़ रहे हैं रात से लेकिन उजालों पर
होगा तुम्हारा नाम ये मालूम है मुझे
रखते हैं कहकहो में छुपाकर उदासियाँ
ये मयकदे तमाम ये मालूम है मुझे
जब तक हरा-भरा हूँ उसी रोज़ तक हैं बस
सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे
उनकी बहुचर्चित ग़ज़ल "प्यार का पहला ख़त" का ये शेर कौन भूल सकता है...
गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हस्तीमल हस्ती साहब की शायरी में एक अलग तरह का तेवर होता है और ये तेवर ही उनकी पहचान है। ज़िन्दगी की जद्दोजहद में संघर्ष का एक लम्बा अरसा बिताते हुए भी वे न तो अपनी जड़ें भूलते हैं और न ही किसी अनपेक्षित स्थिति के सामने झुकने को तैयार होते हैं। एक ग़ज़ल में अपने किरदार के इस पहलू को कितने सशक्त अंदाज़ में बयान करते हैं, ये देखने योग्य है...
चिराग दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
हर एक हाल में तेवर बला का रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते हैं
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े क़रीने से घर को सजा के रखते हैं
जब भी वो जीवन के संघर्षों की बात करते हैं तो साथ ही सिक्के के दूसरे पहलू का ज़िक़्र करना भी नहीं भूलते। इस ग़ज़ल के शेरों की प्रेरक क्षमता से कौन इनकार कर सकता है....
रास्ता किस जगह नहीं होता
सिर्फ़ हमको पता नहीं होता
बरसों रुत के मि़जा़ज सहता है
पेड़ यूं ही बडा़ नहीं होता
एक नाटक है जिन्दगी यारों
कौन बहरुपिया नहीं होता
खौफ़ राहों से किस लिये ‘हस्ती’
हादसा घर में क्या नहीं होता
इसी मिज़ाज़ के कुछ और बेहतरीन शेर हैं जो अलग अलग भावों की अनुपम अभिव्यक्ति हैं....
हम भी मक़ाम छोड़ के इज्ज़त गवाए क्यूं
नदियों के पास कोई समंदर नहीं गया
खुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना
बात पेड़ों की कभी आये तो साया देखना
खूबियाँ पीतल में भी ले आती है कारीगरी
जौहरी की आँख से हर एक गहना देखना
दोस्त पे करम करना और हिसाब भी रखना
कारोबार होता है दोस्त नहीं होती
ख़ुद चिराग़ बन के जल वक़्त के अँधेरे में
भीख के उजालों से रौशनी नहीं होती
शायरी है सरमाया खुशनसीब लोगों का
बाँस की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती अपने शेरों के जरिये अक्सर कुछ ऐसी चेतावनियाँ भी देते हैं जो किसी भी मानसिक विचलन या दुविधा के दौर से बाहर निकालने में मददगार हैं....
सूरज की मानिन्द सफर में रोज निकलना पड़ता है
बैठे बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
पहले अपना मुआयना करना
फिर ज़माने पे तब्सरा करना
एक सच्ची पुकार काफी है
हर घड़ी क्या ख़ुदा-ख़ुदा करना
ग़म पे यूँ मुस्कुरा दिया जाए
वक़्त भी सोचता हुआ आए
हर हथेली में ये लकीरें हैं
क्या किया जाए क्या किया जाए
फूल आगाह करते हैं हमको
फूलों में फूल सा रहा जाए
जीवन की दुश्वारियों, और कठोर सच्चाइयों को निरंतर अपनी ग़ज़लों में शामिल करते हुए हस्ती साहब कभी एकरसता का शिकार नहीं होते। प्रेम और मोहब्बत की बातें उनकी ग़ज़लों में बड़ी शाइस्तगी और खूबसूरती से आती हैं। कुछ बानगियाँ देखिए.....
दिल में जो मुहब्बत की रौशनी नहीं होती
इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती
जिंदगानी इस तरह है आजकल तेरे बगैर
फासले से कोई मेला जैसे तन्हा देखना
जिस्म की बात नहीं थी, उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है
दीवार, घर, व्यक्ति के अंतर्जगत और सुख दुख को परिभाषित करती ये ग़ज़ल भी हमारे दिल के बहुत करीब है...
इस दुनियादारी का कितना भारी मोल चुकाते हैं
जब तक घर भरता है अपना हम खाली हो जाते हैं
इंसानों के अंतर्मन में कई सुरंगें होती हैं
अपने आपको ढूँढने वाले ख़ुद इनमे खो जाते हैं
अपने घर के आँगन को मत क़ैद करो दीवारों में
दीवारें ज़िंदा रहती हैं लेकिन घर मर जाते हैं
आने को दोनों आते हैं इस जीवन के आँगन में
दुःख अरसे तक बैठे रह्ते, सुख जल्दी उठ जाते हैं
एक हिसाब हुआ करता है लोगों के मुस्काने का
जितना जिससे मतलब निकले उतना ही मुस्काते हैं
असामाजिक तत्वों के आव्हान पर उन्माद के लिए लोगों की सहज उपलब्धता का बयान एक ग़ज़ल के इन दो शेरों में कितने शानदार ढंग से किया है उन्होंने....
लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए
सौ आफ़तों का साथ है दिन रात के लिए
ऐसा नहीं कि साथ निभाते नहीं हैं लोग
आवाज़ दे के देख फ़सादात के लिए
इल्ज़ाम दीजिये न किसी एक शख़्स को
मुजरिम सभी हैं आज के हालात के लिए
ज़िन्दगी कभी कभी शतरंज का खेल भी बन जाती है। तमाम मोहरों के बीच मोहब्बत भी एक मोहरा है---
मोहब्बत का ही इक मोहरा नहीं था
तेरी शतरंज पे क्या क्या नहीं था
इंसान की सामर्थ्य सीमा को व्यक्त करता ये शेर ---
हमारे ही क़दम छोटे थे वरना
वहाँ परबत कोई ऊँचा नहीं था
और यह शेर तो मनुष्य के स्वभाव की ग़ज़ब व्याख्या करता है----
किसे कहता तवज्जो कौन देता
मेरा ग़म था कोई क़िस्सा नहीं था
हर इंसान को विरासत में सब कुछ नहीं मिलता। अपने संघर्ष और श्रम से हासिल किए गए जीवन का आनन्द ही कुछ और है---
सारी चमक हमारे पसीने की है जनाब
विरसे में हमको कोई भी जेवर नहीं मिला
आत्ममुग्धता पर तंज करता यह शेर हमें बार बार सावधान करता है---
तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना
देर तक रहना तेरा ये आईनों के दरमियाँ
इन्सान के किरदार और व्यक्तित्व की विभिन्न तहों को खोलते ये शेर देखिए--
हम बदलते नहीं हवा के साथ
हम पे मौसम असर नहीं करते
एक सूरज बहुत ज़रूरी है
चाँद तारे सहर नहीं करते
घर से हमारी आँख-मिचौली रही सदा
आँगन नहीं मिला तो कभी दर नहीं मिला
दोष ख़त में न डाकिये में है
कोई ग़लती मेरे पते में है
मुद्दतों से भटक रहे हैं हम
कोई दुश्मन भी काफ़िले में है
वो मज़ा तो किताब में भी नहीं
जो मज़ा तेरे तब्सरे में है
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छोटी बह्र की ग़ज़लें हस्ती साहब ने खूब लिखी हैं। ये बहुप्रशंसित ग़ज़ल देखिए.....
न बादल न दरिया जाने
पानी क्या है सहरा जाने
पंछी और परवाज़ का रिश्ता
क्या सोने का पिंजरा जाने
क्यों सोने जैसी फ़सलें हैं
इसका राज़ पसीना जाने
ख़ारों की फ़ितरत है चुभना
गुल तो सिर्फ़ महकना जाने
अस्ल पढ़ाई है उसकी जो
चेहरे, मोहरे पढ़ना जाने
हस्ती साहब की ग़ज़लों और उनके शेरों में जीवन के विविध रंग रूप दिखाई देते हैं। उनकी कहन में यह विशेषता है वह सीधे पाठकों को सम्बोधित करते नज़र आते हैं और इसीलिए उनकी बातें अपने गंतव्य तक बड़ी आसानी से पहुँच जाती हैं:-
ग़म की बारिश हो और नहीं टपके
दिल की ऐसी छतें नहीं होतीं
रास्ते उस तरफ़ भी जाते हैं
जिस तरफ़ मंज़िलें नहीं होतीं
बस्तियों में रहें कि जंगल में
किस जगह उलझनें नहीं होतीं।
हस्तीमल ने एक और विधा में कमाल का लेखन किया है। वे जितने प्रभावी अपनी ग़ज़लों में हैं उतने ही दोहों में। चलते चलते उनके कुछ तेजतर्रार और असरकारक दोहे आप सबकी ख़िदमत में पेश करता हूँ।
बूँदें दिखतीं पात पर, यूँ बारिश के बाद
रह जाती है जिस तरह, किसी सफ़र की याद।
अदालतों में बाज हैं, थानों में सय्याद
राहत पाए किस जगह, पंछी की फरियाद।
मेरे हिंदुस्तान का है फ़लसफ़ा अजीब
ज्यों ज्यों आयी योजना, त्यों त्यों बढ़े गरीब।
कभी प्यार, आँगन कभी, बाँटी हर इक चीज
अब तक जीने की हमें आयी नहीं तमीज़।
रहा सफ़लता का यहाँ , हस्ती यही उसूल
गहरे में पानी मिला, ऊपर मिट्टी धूल।
वही गणित हिज्जे वही, मुश्किल वही हिसाब
सुख पहले भी ख़्वाब था, सुख अब भी है ख़्वाब।
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