9 दिसम्बर 2018 की एक शाम। भवन्स कॉलेज अंधेरी का खूबसूरत एस. पी.जैन सभागार और "चौपाल" का नया संस्करण! खचाखच भरी हुई दर्शक दीर्घा में मुम्बई और मुम्बई से बाहर के अनेक शीर्ष रचनाकारों और संस्कृतिकर्मियों की उपस्थिति ने इस शाम को एक मुक़म्मल शाम में तब्दील कर दिया था।
"चौपाल" नामक इस सांस्कृतिक आयोजन की स्थापना बीस वर्ष पूर्व जून 1998 में हुई थी। चौपाल के साथ अनेक विशिष्ट हस्तियों श्री राजेन्द्र गुप्ता, श्री शेखर सेन, श्री अतुल तिवारी और श्री अशोक बिंदल के श्रम, समर्पण और लगन का एक प्रेरक और सकारात्मक इतिहास जुड़ा हुआ है। आज की भव्य चौपाल इन गुणी लोगों की जिद और हुनर का ही प्रतिफल है।
कार्यक्रम के संचालन सूत्र का कुशल निर्वाह करते हुए अतुल तिवारी जी ने मार्क्स , बुद्ध और मजाज पर बेहद तार्किक और खूबसूरत तब्सिरा पेश करने के बाद दास्तानगोई टीम के होनहार कलाकार हिमांशु बाजपेयी को मंच पर आमंत्रित किया और इसके बाद हिमांशु ने मशहूर शायर मजाज़ लखनवी पर केन्द्रित एक घण्टे की जो अद्भुत दास्तानगोई पेश की, उसे मुम्बई वाले जल्दी नहीं भुला पायेंगे।
इस दौरान वहाँ उपस्थित दर्शकों ने मजाज़ साहब की निजी ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ जाना। उनके शेरो शायरी, लतीफ़े, हाज़िर जवाबी! कमाल की याददाश्त है इस दास्तानगो की। आख़िर में हिमांशु ने मजाज़ साहब की इस अमर रचना को पूरे जोशो खरोश के साथ सुनाकर रोमांचित कर दिया....
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
बादल, बिजली, रैन अंधियारी, दुख की मारी परजा सारी
बूढ़े, बच्चे सब दुखिया हैं, दुखिया नर हैं, दुखिया नारी
बस्ती-बस्ती लूट मची है, सब बनिये हैं सब व्यापारी बोल !
अरी, ओ धरती बोल ! !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
कलजुग में जग के रखवाले चांदी वाले सोने वाले
देसी हों या परदेसी हों, नीले पीले गोरे काले
मक्खी भुनगे भिन-भिन करते ढूंढे हैं मकड़ी के जाले
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
क्या अफरंगी, क्या तातारी, आँख बची और बरछी मारी
कब तक जनता की बेचैनी, कब तक जनता की बेज़ारी
कब तक सरमाए के धंधे, कब तक यह सरमायादारी
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
नामी और मशहूर नहीं हम, लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम
धोखा और मज़दूरों को दें, ऐसे तो मजबूर नहीं हम
मंज़िल अपने पाँव के नीचे, मंज़िल से अब दूर नहीं हम
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
बोल कि तेरी खिदमत की है, बोल कि तेरा काम किया है
बोल कि तेरे फल खाये हैं, बोल कि तेरा दूध पिया है
बोल कि हमने हश्र उठाया, बोल कि हमसे हश्र उठा है
बोल कि हमसे जागी दुनिया
बोल कि हमसे जागी धरती
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
इसी वर्ष एक बेहद अविश्वसनीय जल दुर्घटना में वरिष्ठ कलाकार और साथी अंकित को गँवा देने का दुःख हिमांशु की आँखों में लगातार झलकता रहा।
गुलज़ार साहब ने मजाज़ लखनवी और हिमांशु की दास्तानगोई पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए हिमांशु को आशीर्वाद दिया।
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मध्यान्तर के बाद अगले सत्र में प्रसिद्ध लेखक और विविध भारती के उद्घोषक यूनुस खान और हिमांशु के बीच एक छोटी सी गुफ़्तगू हुई जिसने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। ख़ुशनुमा अंदाज में हुए इस वार्तालाप से हिमांशु बाजपेयी के व्यक्तिगत जीवन और उनके शहर लखनऊ के बारे में बहुत सी रोचक जानकरियाँ हासिल हुईं।
अगले वक्ता के रूप में थे शायर अख़्तर आज़ाद। उन्हें इस ग़ज़ल पर श्रोताओं से भरपूर दाद हासिल हुई--
मैं बुरा हूँ या भला अपनी अना में मस्त हूँ
क्यूँ उधर जाऊँ जिधर अच्छा नहीं लगता मुझे
आने वाली नस्ल के हक़ में दुआएँ कीजिए
फूल से चेहरों पे डर अच्छा नहीं लगता मुझे
होती है बच्चों से रौनक़ हर दर-ओ-दीवार की
बिन परिंदों के शजर अच्छा नहीं लगता मुझे
जिन घरों में हो नहीं शामिल दुआ माँ-बाप की
कोई भी घर हो वो घर अच्छा नहीं लगता मुझे
के के बिड़ला न्यास के निदेशक और "हिन्दी चेतना" पत्रिका के सम्पादक डॉ सुरेश ऋतुपर्ण ने बहुत कम समय में चंद हाइकू और एक कविता सुनाकर आनंदित किया।
चौपाल का समापन सत्र भी अविस्मरणीय रहा। वरिष्ठ संगीतकार कुलदीप सिंह के तबला वादन और उनके यशस्वी सुपुत्र ग़ज़ल गायक जसविंदर सिंह के गायन ने श्रोताओं को एक ऐसी दुनिया में पहुँचा दिया जहाँ सिर्फ़ संगीत की स्वर लहरियाँ थीं। पिता- पुत्र की इस जुगलबन्दी का जादू सर चढ़कर बोल रहा था। जसविंदर ने बड़ी सहजता और मधुरता से दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल " मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ " गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर हस्तीमल हस्ती, सूरज प्रकाश, गुलज़ार, विष्णु शर्मा, चित्रा देसाई, विभा रानी, अजय ब्रह्मात्मज, ममता सिंह, रीना पंत, अमृता सिन्हा, सुरबाला मिश्र, अनुराधा सिंह जैसे तमाम लेखक, कवि और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
हिन्दुस्तान के सबसे बड़े प्रकाशन गृह "राजकमल प्रकाशन समूह" द्वारा प्रस्तुत पुस्तक प्रदर्शनी को पाठकों का अपार स्नेह और सहयोग मिला। ममता सिंह का सद्यःप्रकाशित कहानी संग्रह " राग मारवा" इस दौरान लगातार साहित्य प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र रहा।
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