डॉ मोनिका शर्मा की अकादमिक और लेखकीय उपलब्धियाँ खासी प्रभावशाली हैं। अर्थशास्त्र एवं पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिग्री, पी.एच. डी., समाचार वाचक, एंकर,अध्यापक, ब्लॉगर, इसके अलावा महिलाओं, बच्चों और विविध सामाजिक विषयों पर सार्थक लेखन और देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में निरंतर प्रकाशन।
इतने छोटे से जीवन के एक तिहाई हिस्से में इतने बड़े बड़े काम लोग कैसे कर लेते हैं, यह मुझ जैसे औसत मस्तिष्क व्यक्ति के लिए
घोर आश्चर्य और बौद्धिक रूप से आक्रांतकारी विषय है☺☺
इन दिनों गाहे बगाहे उनके कविता संग्रह "देहरी के अक्षांश पर" देखता रहा। वैसे इस देखने के पीछे एक बड़ा कारण इसका खूबसूरत आवरण भी रहा☺
2015 में बोधि प्रकाशन से छपे इस संग्रह की एक बड़ी कविता जो मुझे बहुत अच्छी लगी, तीसरे नंबर पर साझा कर रहा हूँ। हालाँकि कविता के आरंभ में यदि "कभी कभी " शब्द जुड़ा होता तो यह अधिक प्रासंगिक हो जाती। इसके पहले चंद शब्दों में बहुत कुछ कहती दो छोटी कविताएँ......
१)
मुट्ठी भर सपनों और
अपरिचित अपनों के बीच
देहरी के पहले पायदान से आरम्भ होती है
गृहिणी के जीवन की
अनवरत यात्रा।
२)
स्त्री के लिए
अधूरे स्वप्नों को
हर दिन जीने की
मर्मान्तक पीड़ा
गर्भपात की यंत्रणा सी है।
३)
बरसों का साथ बहुत कुछ देकर
सदा के लिए
छीन लेता है आपसी संवाद
सम्बन्धों की सामाजिक रूपरेखा जीवित रहती है
पर शब्द खो जाते हैं
शेष रह जाती है मात्र औपचारिकता
रिश्तों को निभाने की
मन की नहीं
जगत की सुनने सुनाने की।
निश्चित हो जाती है परिसीमाएँ
पसर जाते हैं अनचाहे सन्नाटे
जो भेद जाते हैं कहीं भीतर तक
और सिमट जाते हैं
हृदय के यथार्थ भाव
जन्म-जन्मांतर के साथ में
जीवन गतिशील रहता है
और भावनाएँ गतिहीन हो जाती हैं
तब संवेदनाओं को घर के आहाते में
आजीवन कारावास मिलता है।
डॉ मोनिका शर्मा
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