" वर्तमान भारतीय समाज अनेक प्रजातीय तत्वों व संस्कृतियों के सम्मिश्रण से बना है। इसकी बृहद और व्यापक सांस्कृतिक परम्पराएँ रही हैं। सैकड़ो वर्षों की सामासिक संस्कृति रही है। सबकी अलग अलग वेषभूषा, धार्मिक विश्वास और जीवन मूल्य रहे हैं। इनकी जड़ें इसी मिट्टी में अपने सम्बन्धों, सुखों-दुःखों के बीच पनपी और हृष्ट पुष्ट हुईं। यह सिलसिला एक लम्बे कालखण्ड तक चलता रहा।"
हृदयेश मयंक पिछले लगभग सैंतालीस वर्षों से मुम्बई के साहित्यिक परिदृश्य से जुड़े हैं। इस बड़ी कालावधि के दौरान वे मुम्बई की तमाम साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के सहभागी रहे।
साहित्यिक आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ ही उन्होंने बेहद कुशलता और धैर्य से "चिन्तन-दिशा" पत्रिका का सम्पादन करते हुए देश भर के तमाम साहित्यिक व्यक्तित्वों से अनवरत जुड़े रहने में भी सफलता प्राप्त की है।
अपने सुदीर्घ साहित्यिक अनुभवों को सुरक्षित करने के प्रयास में बरसों पहले उनकी कलम से एक किताब निकली थी- "मुम्बई का साहित्यिक परिदृश्य : एक पुनरावलोकन"। मुम्बई के सांस्कृतिक, साहित्यिक जगत की हस्तियों और गतिविधियों पर आधारित यह एक अनोखी किताब है, जिसे पढ़ते हुए मुम्बई और आसपास के ऐसे तमाम रचनाकारों से हमारा परिचय होता है जिनके बारे में हमने बस सुना भर था।
साहित्य और संस्कृति से जुड़े कुछ और नाम, किताबें और स्मृतियाँ जिन्हें उस किताब में स्थान नहीं मिल पाया था, उन्हें अपनी नई रचना में पिरोकर हाज़िर हुए हैं हृदयेश मयंक।
किताब का शीर्षक - "मेरी बस्ती में रोशनी है अभी" जनाब हस्तीमल हस्ती के एक मक़बूल शेर से लिया गया है। मारियो मिरांडा की एक खूबसूरत कलाकृति इसका आवरण है।
"मेरी बस्ती में रोशनी है अभी" पाँच खंडों में विभाजित है- कथा, कविता, ग़ज़ल, आलेख, संस्मरण।
कथा खण्ड में मयंक जी ने विनोद कुमार श्रीवास्तव, मनु शर्मा, त्रिभुवन पाठक, सूर्यबाला, इश्तियाक़ सईद,डॉ सोहन शर्मा, आशारानी लाल और डॉ महेंद्र भानावत जैसे लेखकों को उनकी कृतियों के माध्यम से याद किया है।
कविताओं के खंड में परमानंद श्रीवास्तव, अरुण कमल, विजय कुमार, लीलाधर जगूड़ी और डॉ शोभनाथ यादव आदि की किताबों पर आधारित आलेख हैं।
ग़ज़लों का खंड भी रचनात्मक दृष्टि से समृद्ध है। इस भाग में नंदलाल पाठक, हस्तीमल हस्ती, उमेश शुक्ल, याक़ूब राही और शमीम अब्बास आदि ग़ज़लकारों और उनकी शायरी पर सार्थक चर्चा की है मयंक जी नें। इसी खंड में समकालीन ग़ज़ल पर उनका एक स्वतंत्र लेख भी है जिसमें ग़ज़लों के वर्तमान स्वरूप और आज के तमाम श्रेष्ठ ग़ज़लकारों पर शानदार तबसरा है।
अगला खंड है आलेखों का , जहाँ डॉ सुधाकर मिश्र और डॉ भगवान तिवारी पर केंद्रित आलेखों के अलावा तीन अन्य विषयों पर आधारित महत्वपूर्ण आलेख "मुम्बई में काव्य गोष्ठियों की परम्परा" , "वैश्विक भाषा के रूप में हिन्दी की विकास यात्रा", और " हिन्दी गीतिकाव्य का स्वरूप और परम्परा" भी शामिल हैं।
अंतिम खंड है स्मृतियों का और यहाँ मयंक जी ने उन रचनाकारों का पुण्य स्मरण किया है जो दुर्भाग्यवश अब हमारे मध्य उपस्थित नहीं हैं।
1)आलोक भट्टाचार्य - कलम उठेगी देश के गद्दारों के ख़िलाफ़,
2) कॉ. रामसागर पांडे: लाल परचम के लिए समर्पित एक जनयोद्धा,
3) रामचन्द्र पांडे श्रमिक : लोग हैं खामोश, मैं यह देखकर हैरान हूँ,
4) आनन्द त्रिपाठी : मनुष्यता की रक्षा के लिए गीतों का सृजन,
5) नीरज कुमार : धूप पानी की तरह खर्च न कर,
6) जफ़र गोरखपुरी : ग़ज़र बजा ही नहीं कारवाँ चला ही नहीं,
7) जगदम्बा प्रसाद दीक्षित : विलक्षण व्यक्तित्व भी, विलक्षण कृतित्व भी।
हृदयेश मयंक की समर्थ भाषा और उनका प्रवाही लेखन हर उस विधा में जान डाल देता है, जिसमें वे लिखते हैं। ये उनका रचनात्मक सामर्थ्य ही है कि वे गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, संस्मरण, निबंध आदि तमाम विधाओं में बड़ी सहजता से आवाजाही करते हैं। उनके स्नेहिल स्वभाव की मृदुलता संस्मरणों के सृजन में सहायक बनती है। यही कारण है कि उनके संस्मरण अत्यंत संस्पर्शी एवं आत्मीय बन पड़े हैं।
परिदृश्य प्रकाशन मुम्बई से प्रकाशित इस किताब के लिए प्रकाशक और लेखक दोनों को साधुवाद!! साहित्य प्रेमियों और शोधार्थियों के लिए यह एक संग्रहणीय पुस्तक है।
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मेरी बस्ती में रौशनी है अभी
हृदयेश मयंक
प्रथम संस्करण वर्ष- 2018
परिदृश्य प्रकाशन
© गंगा शरण सिंह
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