पत्तियों के टूटकर गिरने का मौसम
आने वाला है
किसी दिन ये निःशब्द पेड़ों से
झर जायेंगी,
बग़ैर किसी तरह का शोर किये....
क्योंकि मालूम है उन्हें कि
यही इस जीवन का दस्तूर है
सृष्टि की हर शय को
वापस लौट जाना है नेपथ्य में
अपनी भूमिका ख़त्म होने के बाद....
और ये भी मालूम है कि
उनके जाने के साथ आया हुआ
पतझड़ भी नही होगा स्थायी
हाँ कुछ दिनों तक सन्नाटा सा ज़रूर रहेगा
और खाली खाली उदास सी लगेंगी
इन पेड़ों की टहनियाँ
पर इन्हीं टहनियों पर फिर एक दिन
नन्ही नन्ही कोंपले फूटेंगी
और धीरे धीरे ये उजड़े हुए पेड़
फिर हरे भरे हो जायेंगे।
पुरानी डायरी के पन्नों से....
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