रविवार, 24 नवंबर 2019

जीतेन्द्र पांडेय : वशिष्ठ नारायण सिंह

*बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह के बहाने*

महान गणितज्ञ प्रो. वशिष्ठ नारायण सिंह का जाना  राष्ट्रीय क्षति है । संभवतः इसे जनता और ऊँचे पदों पर बैठे हुक्मरान न समझें । विराट मेधा के धनी वशिष्ठ जी जोड़-तोड़ और जुगाड़ की राजनीति से परे थे । उनकी दुनिया छल-छद्म से विलग निहायत सादगी भरी थी । उनका जाना राजधर्म पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है साथ ही हम सभी को अपने-अपने गिरेबान में झाँकने को मजबूर कर देता है ।
        नासा जैसे प्रतिष्ठित अमेरिकी संस्थान में अपनी सेवाएँ देने वाले वशिष्ठ बाबू अप्रवासी भारतीयों की भी जिम्मेदारी थे । उनका कर्तव्य बनता था कि वे भारतीय सरकार पर दबाव डालकर इस वैश्विक रत्न का जीवन बचा लेते । आज भी प्रतिभा संपन्न अनेकों हस्तियां विदेशी सुख-सुविधा को ठोकर मारकर अपने देश की सेवा करना चाह रही होंगी । उनकी भी सुध रखना अप्रवासी भारतीयों का नैतिक दायित्व बनता है ।
         अब आइए, सरकारों की बात करते हैं । इलाज और सुविधा के अभाव में प्रो. वशिष्ठ नारायण सिंह जैसी शख़्सियत की मौत वर्तमान सरकार के गाल पर जोरदार थप्पड़ है । फिल्मी सितारों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाली सरकारें अपने रीयल हीरो को गुमनामी में जीने के लिए छोड़ देती हैं । दुनिया के साथ कदमताल करने की हड़बड़ी में वे भूल जाती हैं कि उन्हें भी अपने देश की बौद्धिक विरासत का पालन-पोषण और संरक्षण करना होता है । इस संदर्भ में अमेरिका के महान गणितज्ञ जॉन नैश का नाम लेना प्रासंगिक है । उन्हें भी बाबू वशिष्ठ वाली बीमारी हुई थी जिसे सिजोफ्रेनिया के नाम से जाना जाता है । अमेरिका ने अपने इस बौद्धिक टैंक के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया । नौ वर्षों तक जॉन नैश अस्पताल में रहे । स्वस्थ होकर उन्होंने पुनः गणित में शोध कार्य प्रारंभ किया । वर्ष 1994 में गणित के क्षेत्र में 'गेम थ्योरी' के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला । एक हमारी सरकार है जो जंगल-पहाड़ काटकर शहरों को संघाई बनाना चाहती है । थिंकर टैंक उन्हें ही अधिकृत किया जाता है जो जुगाड़ में दक्ष और विशेष विचारधारा से संबंध रखते हैं । यह अलग बात है कि ऐसे विचारक सरकार बदलते ही अपनी विचारधारा बदल देते हैं । बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे अनगिनत गणितज्ञ और वैज्ञानिक दम तोड़ रहे हैं किंतु इस देश में वही फल-फूल और फैल रहा है जो प्रभावशाली और जुगाड़ू है । उसी में भारत की समृद्ध परंपरा और विरासत बसती है । वही हमारे मूल्यों और संस्कृति का संवाहक है, भले ही उसका व्यक्तिगत जीवन विवादास्पद हो ।
             वशिष्ठ जी की ज़िल्लत भरी जिंदगी की सबसे बड़ी गुनाहगार बिहार और देश की जनता भी है । यह वही जनता है जिनके रहमोकरम पर जेलों में कैद खतरनाक अपराधी चुनाव जीत जाते हैं । ये मंदिर-मसजिद के नाम पर कटते-मरते हैं और आरक्षण को लेकर चक्का जाम कर देते हैं । कहा जाता है 'ये पब्लिक है, सब जानती है' , तो ऐसा क्या हुआ कि इसने उनको भुला दिया जिन्होंने कभी अल्बर्ट  आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत को चुनौती दी थी ? अपोलो स्पेस सेटेलाइट लॉन्चिंग मिशन के नायक को सब कुछ जानने वाली जनता ने विस्मृत क्यों कर दिया ? चाहती तो अपने इस सरस्वती पुत्र के समुचित इलाज के लिए सरकार को घुटनों के बल ला देती लेकिन यह ऐसा क्यों करने लगी ? अपने पीठ पर वोटों की फसल ढोने वाली जनता जनार्दन तो व्यक्तिगत स्वार्थ को पहले और सामूहिक हित बाद में रखती है । चंद सिक्कों के लिए अपना ईमान बेचने वालों को वशिष्ठ नारायण से क्या लेना-देना ? 
              सेलिब्रिटीज की खाँसी-बुखार को राष्ट्रीय हलचल बना देने वाली मीडिया ने इस महान गणितज्ञ के मामले में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा । उनके लिए यह मसालेदार खबर नहीं थी जो टीआरपी बढ़ा दे । भला हो, सोशल मीडिया का जिसमें बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह के मृत्यु की खबर आग की तरह फैली । देखते-ही-देखते शासन-प्रशासन दंड बैठक करने लगे  । सबकी सदिच्छाएँ उमड़ने लगीं । मीडिया ने भी इस खबर को हाथों-हाथ लिया । दर्ज़नों लेख लिखे जाने लगे (यह लेख भी अपवाद नहीं) । निहितार्थ यह 'का वर्षा जब कृषि सुखाने' । 
             यह दुर्भाग्य है कि हमने अपने समय का आर्यभट्ट खो दिया । इससे भी दुःखद यह कि आज हमारे देश में न जाने कितने आइंस्टाइन, चाणक्य, रामानुजन, रवींद्रनाथ टैगोर, सी.वी. रमन जैसी प्रतिभाएं अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं । आखिर, उनके भरण-पोषण और संरक्षण की जिम्मेदारी कौन निभाएगा ! उम्मीद है उन्हें भी देश के नागरिक सम्मान देंगे । राष्ट्र उनकी सेवाओं से विश्वगुरु की ओर कदम बढ़ाएगा । बिना खुशामद और बिना कूटनीति के वे भी चर्चा के केंद्र में रहेंगे । उनकी सादगी की तपिश से सारे षड्यंत्र गल जाएंगे । उनकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और देशसेवा सर्वोपरि होगी । बाबू वशिष्ठ नारायण सिंह के बहाने यदि ऐसा कुछ होता है तो देश अधिक समर्थ और प्रतिभा संपन्न होगा ।

- डॉ. जीतेन्द्र पाण्डेय

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