1)
डूबते सूरज की किरनें
एक अजीब सा मायाजाल रचती हैं..
कभी देखिए समन्दर के किनारे बैठकर
किस तरह सूरज का कद घटते घटते
विलीन हो जाता है शून्य में।
जन्म और मृत्यु के बीच की
एक मुक़म्मल विकास यात्रा
देखते हैं हम
सुबह और शाम के बीच
हर रोज, अनवरत!
ये जानते हुए भी कि
अस्त हो जाना ही परिणित है
हर उगते हुए सूरज
की ....
हम जीवन भर डरते रहते हैं मृत्यु से
और
इसी डर की भूलभुलैया में
गँवा देते हैं आनंद के जाने कितने क्षण !
2)
कभी कभी लगता है
कैसे बेरंग सा वो समय था
जब दिनों के सारे गणित गड़बड़ा गए थे स्मृति विहीन होकर
और रातें हो चली थीं अंतहीन...
जीने के लिए दरकार रहती हैं
कुछ स्मृतियाँ
जिनमें
कुछ भूले हुए वादें हों और
बिसरी हुई कुछ कहानियाँ
और
साथ ही
विस्मृतियों की खोह में छुपी
अतीत की ऐसी चिंगारियाँ
जिन्हें हम कुरेदें तो
अतीत के सुंदरतम क्षण
सुलग कर भक से जल उठें।
आज लगता है कि
हाँ, यही है जीवन
जब अहर्निश
तैरती रहती हैं अनगिनत यादें
मन के आकाश में..
कुछ अधूरे रह गए तसव्वुर
अपनी धुरी से टूटकर
घूमते रहते हैं बेसबब
और
दिन-रात का कोई लम्हा खाली नही होता......
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