#किताबें_2020
इन दिनों कई ऐसे कहानी संग्रहों को पढ़ने का अवसर मिला जिनके रचनाकार महानगरों से दूर छोटे शहरों में आवासित हैं। हालाँकि किसी लेखक के निवास स्थल से उसके लेखन की गुणवत्ता का कोई सम्बंध हरगिज़ नहीं होता फिर भी संयोगन ही सही, कई बार ऐसे अनुभव हुए कि महानगरों की आपाधापी, मारामारी और रचनात्मकता का क्षरण करती अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से दूर बैठे कहानीकारों के पास ज़्यादा बेहतर किस्से और कहन मौजूद है।
ऐसी ही एक कथाकार हैं आशा पाण्डेय जी जिनकी कहानियों की दो किताबें पिछले बरस मुझे मिली थीं। 'खारा पानी' और 'चबूतरे का सच'।
'खारा पानी' की कुछ कहानियाँ अभी बाकी हैं, अतः यह चर्चा मूलतः 'चबूतरे का सच' पर ही केन्द्रित है।
बोधि प्रकाशन से इस संग्रह का यह दूसरा संस्करण है जिसमें कुल नौ कहानियाँ शामिल हैं :-
1)नीम का पेड़
2) अपनों के बीच
3) जेल से जेल तक
4) चबूतरे का सच
5) उड़ान की थकान
6) जेब को सोखती दोपहर
7) उत्तर का आकाश
8) सुख
9) सूनी गोद
पहली कहानी 'नीम का पेड़' इस संग्रह की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। पिता के न रहने पर उनकी यादों, उनके जीवन काल की विषमताओं से एकरूप होते पुत्र को धीरे धीरे ही सही किन्तु उन बिन्दुओं की पहचान होती है जहाँ पर पिता की चिंताएँ तार्किक रूप से जायज़ थीं किन्तु वही उन्हें समझने में नाकाम रह गया था। उन भूलों को सुधारने के क्रम में लिए गए उसके निर्णय कहानी के उत्तरार्द्ध को यादगार बनाते हैं।
अपनों के बीच एक वृद्धा के आख़िरी समय में उसके आसपास जुटे लोगों की बतकही पर केन्द्रित है। हमारे समाज में ये आम दृश्य हैं जहाँ लोग जाते तो हैं उस व्यक्ति को देखने जो अपने अंत के नज़दीक है, किन्तु वहाँ भी उनके जीवन के खटराग और ईर्ष्या द्वेष का ही साम्राज्य ही कायम रहता है।
'जेल से जेल तक' एक ऐसे गरीब व्यक्ति की कहानी है जिसका एक स्वभाव ही उसका दुश्मन बन जाता है। यह स्वभाव है उसका आत्म सम्मान। जरा सी बात पर उसके इसी आत्म सम्मान से उपजी अकड़ उसके आगामी जीवन को लगभग बरबाद कर जाती है।
हमारे दैनंदिन जीवन में सेल्समैनों की आवाजाही एक आम सा परिदृश्य बन चला है। बहुत बार ज़रूरत न होने पर भी उनकी ट्रिक से प्रभावित होकर चीजें खरीद ली जाती हैं। 'जेब को सोखती दोपहर' एक ऐसी ही दोपहर की कहानी है जब किसी महिला का ढीला ढाला स्वभाव उसके पूरे महीने का बजट डाँवाडोल कर जाता है।
'उत्तर का आकाश' इस संग्रह की बेहतरीन कहानियों में से एक है। यह तिब्बत से निर्वासित एक ऐसे व्यक्ति की कथा है जो अब हिन्दुस्तान के किसी छोटे शहर में गर्म कपड़े बेचकर जीवन यापन कर रहा है किन्तु उसके अवचेतन में उपस्थित स्वदेश की स्मृति और विस्थापन की पीड़ा अनवरत कायम है।
इस किताब में कुछ और उल्लेखनीय कहानियाँ भी हैं किंतु सबके विषय में चर्चा करने से इनकी रोचकता जाती रहेगी। बेहतर ये है कि जो पाठक कोई ऐसी किताब पढ़ना चाहें जहाँ ग़ैर ज़रूरी शाब्दिक चमत्कार और उलझाऊ शिल्प की जगह सीधी सादी और किस्सागोई से भरपूर कहानियाँ हों, वे इसे ज़रूर पढ़ें।
न पसंद आने की स्थिति में इसे मेरे पते पर भेजकर किताब का मुद्रित मूल्य मुझसे प्राप्त कर सकते हैं।
◆ चबूतरे का सच
◆ आशा पाण्डेय
◆ बोधि प्रकाशन
◆ मूल्य : ₹ 150
इन दिनों कई ऐसे कहानी संग्रहों को पढ़ने का अवसर मिला जिनके रचनाकार महानगरों से दूर छोटे शहरों में आवासित हैं। हालाँकि किसी लेखक के निवास स्थल से उसके लेखन की गुणवत्ता का कोई सम्बंध हरगिज़ नहीं होता फिर भी संयोगन ही सही, कई बार ऐसे अनुभव हुए कि महानगरों की आपाधापी, मारामारी और रचनात्मकता का क्षरण करती अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से दूर बैठे कहानीकारों के पास ज़्यादा बेहतर किस्से और कहन मौजूद है।
ऐसी ही एक कथाकार हैं आशा पाण्डेय जी जिनकी कहानियों की दो किताबें पिछले बरस मुझे मिली थीं। 'खारा पानी' और 'चबूतरे का सच'।
'खारा पानी' की कुछ कहानियाँ अभी बाकी हैं, अतः यह चर्चा मूलतः 'चबूतरे का सच' पर ही केन्द्रित है।
बोधि प्रकाशन से इस संग्रह का यह दूसरा संस्करण है जिसमें कुल नौ कहानियाँ शामिल हैं :-
1)नीम का पेड़
2) अपनों के बीच
3) जेल से जेल तक
4) चबूतरे का सच
5) उड़ान की थकान
6) जेब को सोखती दोपहर
7) उत्तर का आकाश
8) सुख
9) सूनी गोद
पहली कहानी 'नीम का पेड़' इस संग्रह की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। पिता के न रहने पर उनकी यादों, उनके जीवन काल की विषमताओं से एकरूप होते पुत्र को धीरे धीरे ही सही किन्तु उन बिन्दुओं की पहचान होती है जहाँ पर पिता की चिंताएँ तार्किक रूप से जायज़ थीं किन्तु वही उन्हें समझने में नाकाम रह गया था। उन भूलों को सुधारने के क्रम में लिए गए उसके निर्णय कहानी के उत्तरार्द्ध को यादगार बनाते हैं।
अपनों के बीच एक वृद्धा के आख़िरी समय में उसके आसपास जुटे लोगों की बतकही पर केन्द्रित है। हमारे समाज में ये आम दृश्य हैं जहाँ लोग जाते तो हैं उस व्यक्ति को देखने जो अपने अंत के नज़दीक है, किन्तु वहाँ भी उनके जीवन के खटराग और ईर्ष्या द्वेष का ही साम्राज्य ही कायम रहता है।
'जेल से जेल तक' एक ऐसे गरीब व्यक्ति की कहानी है जिसका एक स्वभाव ही उसका दुश्मन बन जाता है। यह स्वभाव है उसका आत्म सम्मान। जरा सी बात पर उसके इसी आत्म सम्मान से उपजी अकड़ उसके आगामी जीवन को लगभग बरबाद कर जाती है।
हमारे दैनंदिन जीवन में सेल्समैनों की आवाजाही एक आम सा परिदृश्य बन चला है। बहुत बार ज़रूरत न होने पर भी उनकी ट्रिक से प्रभावित होकर चीजें खरीद ली जाती हैं। 'जेब को सोखती दोपहर' एक ऐसी ही दोपहर की कहानी है जब किसी महिला का ढीला ढाला स्वभाव उसके पूरे महीने का बजट डाँवाडोल कर जाता है।
'उत्तर का आकाश' इस संग्रह की बेहतरीन कहानियों में से एक है। यह तिब्बत से निर्वासित एक ऐसे व्यक्ति की कथा है जो अब हिन्दुस्तान के किसी छोटे शहर में गर्म कपड़े बेचकर जीवन यापन कर रहा है किन्तु उसके अवचेतन में उपस्थित स्वदेश की स्मृति और विस्थापन की पीड़ा अनवरत कायम है।
इस किताब में कुछ और उल्लेखनीय कहानियाँ भी हैं किंतु सबके विषय में चर्चा करने से इनकी रोचकता जाती रहेगी। बेहतर ये है कि जो पाठक कोई ऐसी किताब पढ़ना चाहें जहाँ ग़ैर ज़रूरी शाब्दिक चमत्कार और उलझाऊ शिल्प की जगह सीधी सादी और किस्सागोई से भरपूर कहानियाँ हों, वे इसे ज़रूर पढ़ें।
न पसंद आने की स्थिति में इसे मेरे पते पर भेजकर किताब का मुद्रित मूल्य मुझसे प्राप्त कर सकते हैं।
◆ चबूतरे का सच
◆ आशा पाण्डेय
◆ बोधि प्रकाशन
◆ मूल्य : ₹ 150
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