गुरुवार, 12 जुलाई 2018

जल संसाधन : गहराता संकट , कृष्ण कुमार मिश्र

कवि रहीम ने सैकड़ों वर्ष पूर्व एक दोहे के माध्यम से हमें चेतावनी दी थी--
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून

ये दोहा पढ़ा हर पीढ़ी ने किन्तु इस पर सही ढंग से अमल कभी नहीं हुआ। प्राकृतिक संसाधनों के अवैध दोहन और जीवनदायी जल के भयंकर दुरुपयोग के परिणामस्वरूप आज पूरी सृष्टि एक ऐसे चिंताजनक मोड़ पर खड़ी है कि यदि हम शीघ्र ही नहीं चेते तो आने वाला समय हमें पश्चाताप का अवसर भी नहीं दे सकेगा।

जल संसाधनों की निरन्तर गम्भीर होती समस्या पर केन्द्रित किताब "जल संसाधन : गहराता संकट" इसी वर्ष किताबघर प्रकाशन से आई है। वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं लेखक कृष्ण कुमार मिश्र की इस महत्वपूर्ण पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है प्रख्यात विज्ञान लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी जी ने। मेवाड़ी साहब कहते हैं कि "जल के बिना जीवन की कल्पना भी कठिन है। औद्योगिकीकरण और कल कारखानों के चलते जलस्रोत समय के साथ प्रदूषित होते गए। पर्यावरण एक जीवंत इकाई है और उसके तमाम घटक परस्पर संयुक्त और अन्योन्याश्रित हैं, इस बात के प्रति हममें सम्यक समझ विकसित नहीं हो सकी।" उनका अंतिम वक्तव्य भी बहुत मानीखेज़ है कि-- "जल जागरण का इतना बड़ा कार्य केवल कुछ व्यक्तियों या संस्थाओं के बूते नहीं किया जा सकता है। जाहिर है सबको अपने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी उठाना होगा और जल संरक्षण का व्रत लेना होगा ।"

कृष्ण कुमार मिश्र जी आरंभिक पृष्ठों पर जल का परिचय देते हुए मानव जीवन में जल की महती आवश्यकता और भूमिका पर विस्तार से चर्चा करते हैं। समस्त प्राचीन सभ्यताओं का उद्भव नदियों और जलस्रोतों के किनारे हुआ। कालांतर में जब भौगोलिक या जलवायु के कारणों से ये जलस्रोत या नदियाँ समाप्त हुईं तो इनके साथ ही वो सभ्यताएँ भी विलुप्त हो गईं।

इदं सलिलं सर्वं - ऋग्वेद

भारतीय पौराणिक मान्यताओं और यूनानी परम्परा में भी जल की अहम भूमिका का वर्णन मिलता है। पृथ्वी की सतह का 70.8 भाग जल है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में जल संकट किसी प्राकृतिक कारण से है, बल्कि यह संकट पूरी तरह से मानव निर्मित है। विश्व में वर्षा का वार्षिक औसत जहाँ 870 मिलीमीटर है वहीं भारत में प्रतिवर्ष औसतन 1100 मिलीमीटर वर्षा होती है। इस बारिश का दो तिहाई भाग नदियों के द्वारा बहकर समुद्र में चला जाता है। बचा एक तिहाई झील, पोखर, तालाबों आदि में इकट्ठा हो जाता है। यह शेष जलराशि भी कम नहीं है अगर हम इसे सहेज सकें। हमें जल संग्रह पर ध्यान देना होगा, जल को प्रदूषित होने से बचाना होगा, जल शुद्धिकरण के उपाय करते हुए बड़े स्तर पर जल जागरूकता का अभियान चलाना होगा, तभी यह मानव सभ्यता सुरक्षित रह पाएगी।

अगले अध्याय में जल के भौगोलिक वितरण पर प्रकाश डाला गया है।
मिश्र जी बताते हैं कि- धरती पर मौजूद कुल जल राशि का 2.67 प्रतिशत जल ही सादा उपयोगी जल है। इसका भी दो प्रतिशत ध्रुवीय क्षेत्रों तथा हिमनदों में बर्फ़ के रूप में जमा है।
भारत में लगभग दो सौ घंटों की बारिश होती है। इस वर्षा का केवल 20 प्रतिशत जल ही हम सुरक्षित रख पा रहे हैं। यही कारण है कि हर वर्ष शीत ऋतु के समाप्त होते होते देश के अधिकांश हिस्सों में जल के लिए त्राहि त्राहि होने लगती है।

अगला अध्याय है- जल का उपयोग जहाँ विभिन्न दैनिक आवश्यकताओं एवं कृषि तथा अन्य उद्योग धंधों में
प्रयोग किये जाने वाले जल की औसत मात्रा का विवरण दिया गया है।

"जल - एक अमूल्य संसाधन" नामक अध्याय में कृष्ण कुमार मिश्र लिखते हैं- " जल संसाधनों की दृष्टि से भारत विश्व के समृद्धिशाली राष्ट्रों में से एक है जहाँ छोटी बड़ी 10360 नदियों में विपुल जल राशि मौजूद है। यदि हम इस जल का व्यवस्थित प्रबंधन कर सकें तो वह हमारी कृषि भूमि के 90 प्रतिशत क्षेत्र को सींचने के लिए पर्याप्त होगा।
पिछले दशक में केरल जैसे राज्य, जहाँ से मानसून का आरम्भ होता है, को भी सूखे का सामना करना पड़ा। वर्षा और जल की कमी का प्रमुख कारण पश्चिमी घाटों में स्थित सघन वनों का अंधाधुंध दोहन है। देश के कई राज्य सूखा प्रभावित क्षेत्र बन चुके हैं। अधिकतर नदियाँ विनाश के कगार पर हैं। नदियों का विनाश कालांतर में सभ्यता और संस्कृति के विनाश का कारण भी बन जाता है।"
इस अध्याय में विभिन्न नदियों, घाटों, बाँधों, तालाबों, बावड़ियों, टंकाओं, झीलों आदि का बहुत ही उपयोगी सचित्र वर्णन हुआ है।

"जल प्रदूषण" नामक खंड में उन्होंने उन तमाम बिंदुओं पर चर्चा की है जिनके कारण जल प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ती गयी और आज प्रदूषित जल से उत्पन्न समस्याएँ हमारे सामने हैं।

गंगा जैसी पूजनीय और पावन नदी को इस कदर कलुषित किया गया कि आज गंगाजल में भी कीड़े मिलने लगे हैं। बरसों बरस हमारे घरों में रखे रहने के बावजूद गंगा जल कभी प्रदूषित नहीं होता था। पिछले कई दशकों से गंगा सफाई के नाम पर हमारी सरकारें करों के रूप में जनता से वसूले गए राजकोष से करोड़ो रुपयों का अपव्यय कर चुकी हैं।

"जल परीक्षण एवं शुद्धिकरण" अध्याय में जल को परखने और इसे शुद्ध करने के उपायों की लाभदायक चर्चा की गई है।

अंतिम महत्वपूर्ण अध्याय "जल संरक्षण एवं जल जागरूकता"  जल संरक्षण के विभिन्न तरीकों से हमारा परिचय कराता है। जल संरक्षण की कोशिशें तभी कामयाब होंगी जब हमारे भीतर जल जागरूकता जागेगी।
भविष्यविद हमें पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगला विश्वयुद्ध यदि कभी हुआ तो वह पानी के लिये होगा। ऐसे कठिन समय में यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि यदि हमनें जल जागरूकता और जल संरक्षण के प्रति ध्यान न दिया और पर्यावरण के साथ किये जा रहे अत्याचारों पर रोक न लगी तो कभी न कभी प्रकृति के रोष का सामना हमें करना ही होगा। प्रकृति के उस प्रकोप से बचने और इस मानव सभ्यता को जीवित रखने के प्रयास अभी से करने होंगे। इस दिशा में हम पहले ही बहुत देर कर चुके हैं।

श्रम,शोध और समर्पण से रची गयी इस पुस्तक के लिए कृष्ण कुमार मिश्र जी का हार्दिक अभिनंदन। वैज्ञानिक तथ्य, विचार और समाधान से परिपूर्ण यह प्रयास ऐसे समय में हमारे सामने आया है जब इसकी बहुत आवश्यकता थी। किताबघर से प्रकाशित इस पुस्तक का आवरण और मुख्य सामग्री की प्रस्तुति प्रशंसनीय है। गुणवत्ता से युक्त इस त्रुटिहीन प्रकाशन के लिए लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।

जल संसाधन: गहराता संकट
कृष्ण कुमार मिश्र
किताबघर प्रकाशन
वर्ष 2018
मूल्य - ₹ 200

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