सोमवार, 12 नवंबर 2018

देखा जब स्वप्न सवेरे : डॉ जितेंद्र पाण्डेय

किताब : देखा जब स्वप्न सवेरे
लेखक : डॉ जितेन्द्र पाण्डेय
प्रकाशक : परिदृश्य प्रकाशन
6, दादी संतुक लेन, धोबी तालाव 400002
मूल्य : ₹ 175

यात्रा वृत्तान्त एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक विधा है। यात्राएँ यदि सोद्देश्य और गंतव्य विशेष हों तो हम इन यात्राओं से यक़ीनन समृद्ध होते हैं। डॉ जितेन्द्र पाण्डेय के यात्रा वृत्त " देखा जब स्वप्न सवेरे " की प्रस्तावना में संजीव निगम ने सत्य ही कहा है कि यात्रा वृत्त यदि रोचकता और प्रमाणिकता से लिखे जाएँ तो किसी कहानी से कम आनन्द नहीं देते। स्वयं लेखक अपनी भूमिका में लिखते हैं कि यात्रा वृत्त ऐसी विधा है जिसमें तटस्थता और संलग्नता का समुचित अनुपात बहुत मायने रखता है। इसमें व्यक्तिगत उल्लेख दाल में नमक जितना ही होना चाहिए अन्यथा स्वादहीनता का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

" देखा जब स्वप्न सवेरे " का पहला अध्याय सेतुबन्ध रामेश्वरम यात्रा पर केन्द्रित है। रास्ते के मनोरम दृश्यों के अलावा 6 हेक्टेयर में फैले रामनाथ मन्दिर और रामसेतु की भव्यता के विवरण आश्चर्यचकित कर जाते हैं।
इसी सन्दर्भ में सरकार के रामसेतु को तोड़कर "सेतु समुद्रं परियोजना" की व्यावहारिक समस्या का सार्थक विश्लेषण किया है लेखक ने।
अगले यात्रा वृत्त में जितेंद्र पाण्डेय हैदराबाद स्थित गोलकुंडा किले, सालारजंग म्यूजियम, रामोजी फ़िल्म सिटी और देश के सबसे बड़े चिड़ियाघर " नेहरू प्राणी उद्यान" की सैर कराते हुए इन स्थलों की भौगोलिकता और ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथ्यों पर सार्थक जानकारी देते हैं।

अनेक ऋषियों, मुनियों, चक्रवर्ती सम्राटों, साहित्यकारों और विचारकों की जन्म और कर्मस्थली रहे गोरखपुर, महाराष्ट की एलीफैंटा गुफाएँ, पंचगनी, महाबलेश्वर, अलीबाग, शनि सिंगड़ापुर, देवभूमि हरिद्वार, पुण्य भूमि प्रयाग और श्री राम की नगरी अयोध्या, राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित नाथद्वारा, केसर और संस्कृत भाषा के कवियों, आचार्यों की जन्मभूमि के रूप में प्रख्यात काश्मीर जैसे ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों के यात्रा संस्मरण उल्लेखनीय बन पड़े हैं। जितेंद्र पाण्डेय जितनी आत्मीयता और गौरवबोध से इन स्थानों के प्राकृतिक सौन्दर्य, निसर्ग के सौम्य विस्तार, ऐतिहासिक धरोहरों और उनकी विशेषताओं का वर्णन करते हैं उतनी ही ईमानदारी और तटस्थता से विरोधाभासी परिवर्तनों को भी रेखांकित करते हैं।
गोरखपुर के संदर्भ में वे लिखते हैं कि इसका अतीत जितना यशस्वी रहा है, वर्तमान उतना ही चिन्ताजनक! नकारात्मक शक्तियों ने इसे आतंक की नर्सरी में तब्दील कर दिया है।

नाश्ते के पैकेट वापस करते अलीबाग के भिखारी, शनि सिंगड़ापुर के अर्थ पिशाचों और ठगों के कारण झरती आस्था, लोगों की धार्मिक भावनाओं और आस्था का लाभ उठाते अयोध्या के दुकानदार और टूरिस्ट गाइड, आतंक फैलाते बंदरों, नाथद्वारा के छप्पन भोग और वहाँ के मजदूरों की पीड़ा का चित्रण विश्वनीयता से भरपूर और प्रभावी बन पड़ा है।

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